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आयोजन

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व्याख्यान श्रृंखला : साठोत्तरी हिंदी कहानी में हाशिए के लोग

प्रोफेसर आलम शाह ख़ान की 19वीं पुण्यतिथि के अवसर पर श्रमजीवी कॉलेज के सभागार में 'साठोत्तरी हिंदी कहानी में हाशिए के लोग' विषय पर व्याख्यान श्रृंखला आयोजित की गई। मुख्य वक्ता लेखक एवं दूरदर्शन के पूर्व ए.जी.एम कृष्ण कल्पित ने कहा कि आलम शाह ख़ान को अपनी रचनाशीलता की वजह से लोकप्रियता प्राप्त थी। मुख्यमंत्री के विशेष अधिकारी साहित्यकार एवं व्यंग्यकार फारुख़  आफ़रीदी ने कहा कि आलम शाह ख़ान मेवाड़ की अज़ीम  शख्सियत हैं। वे मेवाड़ की धरती पर जन्मे ऐसे अनमोल रत्न हैं,जो कहानी के कारण आज तक जिंदा हैं। जैसे चंद्रधर गुलेरी को 'उसने कहा था' के लिए आज भी याद किया जाता है उसी तरह प्रोफेसर ख़ान की कहानियों को आज तक भुलाया नहीं जा सका।अध्यक्षता करते हुए प्रोफ़ेसर कवि एवं आलोचक सत्यनारायण व्यास ने आलम शाह ख़ान के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। अतिथियों ने साहित्यकार डॉ तराना परवीन के कहानी संग्रह 'एक सौ आठ' का विमोचन भी किया। कार्यक्रम के दौरान डॉ सर्वत ख़ान ने इस पुस्तक के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी की। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर उग्रसेन राव ने किया।

व्याख्यान  श्रृंखला :डॉक्टर आलम शाह ख़ान के रचना संसार पर गहन चर्चा,2021

डॉ. आलम शाह ख़ान यादगार समिति की ओर से आलम शाह ख़ान की पुण्यतिथि के अवसर पर "आलम शाह ख़ान: व्यक्तित्व एवं कृतित्व" विषयक तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला आयोजित की गई। कार्यक्रम संयोजक व आलम शाह ख़ान की सुपुत्री प्रो. तराना परवीन ने बताया कि पहले दिन कहानी एवं डॉ. आलम शाह खान विषय पर बनास जन के संपादक और दिल्ली विश्वविद्यालय में व्याख्याता डॉ. पल्लव और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने प्रोफ़ेसर आलम शाह ख़ान  के संस्मरण सुनाए और वर्तमान में साहित्य की भूमिका के साथ ही आधुनिक कहानी के विकास में उनके योगदान पर चर्चा की। श्री विजय रंछन पूर्व आईएएस एवं फिल्म क्रिटिक ने उनकी कहानी "किराए की कोख" को विचलित कर देने वाली कहानी बताया तथा उन्हें हिंदी का एकमात्र कथाकार बताया जिसने विभित्स रस में लिखी अपनी कहानियों का अंत भी उसी रस में किया। जयपुर के वरिष्ठ साहित्यकार ईश मधु तलवार ने 'किराए की कोख' व 'एक और मौत', डॉक्टर हेमेंद्र चंडालिया ने "मौत का मजहब" तथा आशीष सिंह ने "चीर हरण के बाद" कहानी के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की। कार्यक्रम में डॉ. प्रणु शुक्ला डॉ. इंदिरा जैन, डॉ. गोपाल सहर, डॉ. प्रमिला चंडालिया, डॉ. हेमेंद्र पानेरी एवं प्रो. श्रीनिवासन अय्यर ने "अ-नार " कहानी पर अपने विचार रखे।

वेबिनार,2020

दिनांक 17 मई 2020 को देश के प्रसिद्ध कथाकार आलम शाह ख़ान की 17 वीं बरसी पर आलम शाह ख़ान यादगार समिति द्वारा एक वेबीनार आयोजित किया गया , जिसमें  देश की जानी-मानी हस्तियाँ, उनके समकालीन लेखक ,मित्र ,एवं शिष्य भी शामिल हुए तथा उनके  व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपने विचार व्यक्त किए । इस वेबीनार में जयपुर के प्रो. दुर्गा प्रसाद अग्रवाल  ने  बताया कि उन्होंने लंबे काल के बावजूद ज़्यादा कहानियां नहीं लिखीं तथा वे संवेदना के स्तर पर कहानी को जीते थे और उसके बाद लिखते थे । वे अपने आसपास की भाषा को गंभीरता से सुनने के बावजूद उसे ज्यों का त्यों लिखने की बजाय उसे निर्मित और पुनर्निर्मित करके समृद्ध करते थे। प्रो माधव हाड़ा ने आलम शाह ख़ान द्वारा कम पर महत्वपूर्ण कहानियां लिखने का ज़िक्र  किया। वहीं मुंबई के साहित्यकार जीतेंद्र भाटिया ने समानांतर कहानी आंदोलन में कमलेश्वर के साथ काम करते समय के संस्मरण साझा  किये  और  बताया कि उस समय आलम शाह ख़ान की इतनी अधिक संवेदनशील कहानियां पढ़कर सभी चौंक गए थे। कहानी 'पराई प्यास का सफर' पर आधारित दूरदर्शन पर प्रसारित टेली फिल्म की पटकथा के लेखककीय अनुभव के साथ ही उन्होंने प्रोफेसर साहब के साथ हुए गंभीर विमर्श को भी रेखांकित किया।

16वीं पुण्यतिथि पर स्मृति संगोष्ठी 2019  : व्यक्तित्व   एवं  कृतित्व  

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प्रोफेसर आलम शाह ख़ान की 16 वीं पुण्यतिथि पर प्रो. आलम शाह ख़ान  यादगार समिति तथा माणिक्य लाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय  में संगोष्ठी का आयोजन किया गया। वेद दान सुधीर ने कहा कि ख़ान साहब की लेखनी ने हमेशा समाज में बदलाव का काम किया है। गुस्सा ख़ान साहब को भी आता था लेकिन उनका यह गुस्सा समाज में व्याप्त अव्यवस्थाओं को लेकर था। उनकी कहानियों के पात्र विषमता में जीते हुए मानवीय संवेदना जगाने वाले पात्र हैं।  उनकी पीड़ा, व्यवस्था के प्रति पाठक के मन में आक्रोश पैदा करती है। प्रोफेसर मंजू चतुर्वेदी ने कहा कि प्रो ख़ान का साहित्य अंततः करुणा उत्पन्न करता है जो श्रेष्ठ साहित्य की विशेषता है।

मीरां : लोकतात्त्विक अध्ययन  पुस्तक  पुन : प्रकाशन , 2019

आलम शाह ख़ान यादगार समिति द्वारा दिनांक 22 जनवरी 2019 को प्रोफेसर आलम शाह ख़ान द्वारा 1989 में लिखित पुस्तक "मीरां : एक लोकतात्विक अध्ययन"जिसका  पुनः प्रकाशन साहित्य भंडार इलाहाबाद  ने 2019  किया तथा 

संपादन  पल्लव नई दिल्ली ने  किया का लोकार्पण कार्यक्रम लेक सिटी प्रेस क्लब  उदयपुर  में संपन्न हुआ। आलोचक प्रो. नवल किशोर शर्मा ने कहा कि डॉ. ख़ान  ने डूबकर मीरां  के परिवेश को समझा और मीरां  को देखने समझने की नई दिशा दी। प्रो. माधव हाड़ा ने बताया कि प्रो. खान ने पहली बार मीरां  के व्यक्तित्व को स्थानिक रूप से समझते हुए मीरां  के सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण को समाज के समक्ष रखने का प्रयास किया। डी यू के पल्लव ने संपादकीय टिप्पणी में बताया कि इस पुस्तक में मीरां  का पहली बार लोक के परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण किया गया। साहित्यकार रजनी कुलश्रेष्ठ ने बताया कि मीरां  के पदों में सामाजिक सरोकारों व मानवीय रिश्तों  का बखूबी वर्णन है जिन्हें इस पुस्तक  में सम्मिलित किया गया है। स्वागत डॉ तराना परवीन, अभिनंदन डॉ.तबस्सुम ख़ान , संचालन डॉ उग्रसेन राव एवं धन्यवाद  कवि श्री कृष्ण  दाधीच जी ने दिया।

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15वीं पुण्यतिथि पर स्मृति संगोष्ठी ,2018

दिनांक 17 मई 2018 को प्रोफेसर आलम शाह ख़ान  की 15वीं पुण्यतिथि पर  स्मृति संगोष्ठी का आयोजन माणिक्य लाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय में किया गया। संगोष्ठी के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार श्री आबिद अदीब ने कहा कि प्रो. आलम शाह ख़ान प्रगतिशील चेतना के रचनाकार थे। उन्होंने समाज के वंचित एवं शोषित तत्वों की पीड़ा को उजागर किया। वर्तमान में जब मानवता पर ख़तरा मंडरा रहा है ,जनतांत्रिक मूल्य भुला दिए जा रहे हैं ,तब उनका लेखन अधिक प्रासंगिक है। मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के रूप में समकालीन विषयों पर उनके आलेख व्यवस्था के अंतर्विरोधों को रेखांकित करते हैं। डॉ.तराना परवीन ने डॉ.ख़ान  के समग्र लेखन का पुनः प्रकाशन, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र की विभागाध्यक्ष प्रो.सुधा चौधरी ने विश्वविद्यालय के प्राध्यापक व अन्य कर्मचारियों के संस्मरण एकत्रित कर उनका प्रकाशन,डॉ मीनाक्षी जैन ने उनके पत्रों का संकलन, डॉ. फरहत बानू ने उनके व्यक्तित्व एवं सामाजिक जीवन में उनके योगदान को रेखांकित करने,डॉ इंद्रा  जैन ने उनके लेखन पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन , जनवादी मज़दूर  यूनियन के संस्थापक श्री डी.एस. पालीवाल ने उनके लेखन को आम जनता तक पहुंचाने ओर प्रेरित करने, तथा प्रो. चंडालिया ने देशभर में फैले उनके साहित्य के प्रशंसकों एवं विद्वानों से संपर्क कर समालोचनात्मक आलेख एकत्रित करने का सुझाव दिया।

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प्रथम पुण्यतिथि पर स्मृति संगोष्ठी,2004 

प्रो.आलम शाह  ख़ान की प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका विषय था 'प्रो.आलम शाह ख़ान  का सृजन सरोकार'। इस अवसर पर प्रसिद्ध कथाकार कमलेश्वर ने कहा की प्रो. आलम शाह ख़ान  का कथा संसार कालजयी रहा है। राजस्थान ही क्या सुदूर दक्षिण और विदेश तक उनका पाठक वर्ग विद्यमान है। उनकी कहानियों ने स्थानीयता के रंगों को छुआ व देशी भाषा का प्रयोग किया तथा साहित्य में भूमंडलीकरण के संदर्भों को भी स्पष्ट किया। कवि नंद चतुर्वेदी ने कहा कि प्रो. ख़ान  की कहानियों में स्थानीयता की पूरी झलक देखी जा सकती है। कांकरोली से आए क़मर मेवाड़ी ने प्रो. ख़ान  की कहानियों के सरोकारों को स्पष्ट करते हुए उनके विभिन्न संस्मरण भी सुनाए। प्रो.ख़ान  की पुत्री डॉ.तराना परवीन ने उनकी कहानियों में रंग विधान को परिभाषित किया व कहा कि निजी जीवन में एक पिता के साथ, एक मां की भूमिका में भी खरे उतरे। शोधार्थी हेमेंद्र पानेरी ने प्रेमचंद की  कहानियों से प्रो.खान की कहानियों की तुलना की। संगोष्ठी की अध्यक्षता मानव अधिकार आयोग के सदस्य अमर सिंह गोदारा ने की।आयोजन में नगर की अनाहदनाद संस्थान की ओर से प्रो. खान की कहानी  "रस्सी का सांप" का मंचन महेश नायक के निर्देशन में हुआ।

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